Parivar Pehchan Patra पर हाई कोर्ट का आदेश-2025

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हरियाणा राज्य में नागरिकों के लिए Parivar Pehchan Patra (PPP) की महत्वता पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि हरियाणा सरकार तुरंत सुधारात्मक कदम उठाए, ताकि किसी भी नागरिक को परिवार पहचान पत्र की कमी के कारण महत्वपूर्ण और मौलिक सेवाओं से वंचित न किया जाए।

इस आदेश के माध्यम से, कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की दिशा में पहल की है कि परिवार पहचान पत्र को लेकर किसी भी नागरिक को समस्याओं का सामना न करना पड़े।

हाई कोर्ट का आदेश और उसका महत्व

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने यह आदेश सरकार द्वारा दायर विस्तृत जवाब पर विचार करने के बाद दिया। इसमें सरकार ने स्पष्ट किया कि Parivar Pehchan Patra (PPP) अनिवार्य नहीं है, बल्कि यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया है।

Parivar Pehchan Patra पर हाई कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और सरकार से कहा कि पीपीपी को अनिवार्य मानने के बजाय, इसको नागरिकों के लिए एक स्वैच्छिक प्रक्रिया के रूप में रखा गया है, लेकिन इसके बावजूद, इसकी कमी के कारण कोई भी नागरिक मौलिक सेवाओं से वंचित नहीं होना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि मौलिक सेवाएं, जैसे कि पीने का पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, बिजली, स्वच्छता, पुलिस और अग्निशमन जैसी आपातकालीन सेवाएं, जीवन रक्षार्थ आवश्यक हैं और इनके लिए पीपीपी को अनिवार्य नहीं माना जा सकता। फिर भी, यदि यह पीपीपी किसी व्यक्ति के लाभ के लिए जरूरी हो, तो इसको सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नागरिक पीपीपी के अभाव में इन सेवाओं से वंचित न हो।

अदालत ने हरियाणा सरकार से इस संबंध में 29 जनवरी तक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। यह रिपोर्ट यह सुनिश्चित करेगी कि हरियाणा सरकार सुधारात्मक कदम उठा रही है और इसके बाद यदि कोई नागरिक इन मौलिक सेवाओं से वंचित होता है, तो इसके लिए सरकार जिम्मेदार होगी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला हाई कोर्ट में एक याचिका के जरिए पहुंचा था, जिसे सौरभ और अन्य लोगों ने दायर किया था। याचिकाकर्ताओं ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग (HSSC) द्वारा ग्रुप-सी और ग्रुप-डी की नौकरियों के लिए आयोजित किए गए कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (CET) में Parivar Pehchan Patra (PPP) डेटा से जुड़ी समस्याओं का मुद्दा उठाया था। इन याचिकाकर्ताओं की उम्मीदवारी इसलिए खारिज कर दी गई थी क्योंकि उन्होंने गलत पिछड़ा वर्ग (BC) प्रमाणपत्र अपलोड किया था, जबकि आयोग यह प्रमाणपत्र परिवार पहचान पत्र के माध्यम से सत्यापित कर सकता था।

Parivar Pehchan Patra पर हाई कोर्ट का आदेश

यह मामला बहुत ही संवेदनशील था क्योंकि इससे यह स्पष्ट हुआ कि अगर किसी नागरिक के पास Parivar Pehchan Patra नहीं होता या वह इसे गलत तरीके से प्रस्तुत करता है, तो उसका अवसर न केवल नौकरियों के लिए, बल्कि कई अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए भी समाप्त हो सकता है। इससे नागरिकों के बीच अनावश्यक भ्रम और परेशानी का माहौल उत्पन्न हो सकता है। अदालत ने इस मुद्दे पर भी गंभीर विचार किया और आदेश दिया कि इस स्थिति में सुधारात्मक कदम उठाए जाएं।

सरकार का पक्ष

हरियाणा सरकार ने इस मामले में अदालत को बताया कि सभी मौलिक और आवश्यक सेवाओं की पहचान की जा रही है, जिनके लिए Parivar Pehchan Patra को अनिवार्य माना जा सकता है।

इसके साथ ही, सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी सरकारी योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पीपीपी को अनिवार्य किया जा सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे।

सरकार ने अदालत से यह भी कहा कि वह जल्द ही आवश्यक सुधारात्मक कदम उठाएगी और सभी संबंधित विभागों के साथ समन्वय कर पीपीपी की प्रक्रिया में सुधार करेगी, ताकि किसी भी नागरिक को इसके कारण समस्याओं का सामना न करना पड़े।

भविष्य में होने वाले बदलाव

यह आदेश इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सरकारी प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता है, खासकर जब बात नागरिकों की मूलभूत जरूरतों और अधिकारों की हो। परिवार पहचान पत्र (PPP) एक महत्वपूर्ण दस्तावेज हो सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल इस तरह से नहीं होना चाहिए कि वह नागरिकों के लिए परेशानी का कारण बने।

सरकार को इस मामले पर जल्द से जल्द ध्यान देना होगा और सुधारात्मक कदम उठाने होंगे। ऐसा कदम सुनिश्चित करेगा कि नागरिकों को सरकारी सेवाओं और योजनाओं का लाभ प्राप्त करने में कोई बाधा न आए। साथ ही, यह भी जरूरी है कि परिवार पहचान पत्र की प्रक्रिया को समझने और लागू करने में किसी प्रकार की गलतफहमी न हो, ताकि नागरिकों को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।

समाप्ति में, यह मामला हरियाणा सरकार और प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि वे अपनी नीतियों में सुधार करें और सुनिश्चित करें कि कोई भी नागरिक किसी भी दस्तावेज या प्रमाणपत्र की कमी के कारण मौलिक सेवाओं से वंचित न हो।

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