साउथ फिल्म Industry से एक दुखद खबर सामने आई है। मशहूर निर्देशक Shaji n karun का 73 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्होंने रविवार को Thiruvananthapuram स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर ने पूरे फिल्म जगत को शोक में डुबो दिया है। Social Media पर सितारे और प्रशंसक भावुक संदेशों के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
Shaji n karun के निधन के बाद उनका अंतिम संस्कार थाइकौड स्थित संतिकावदोम में किया जाएगा। वे अपने पीछे पत्नी Anasuya Devaki Warrier और दो पुत्र, Appu और Anil, को शोकाकुल छोड़ गए हैं।
मिली जानकारी के अनुसार, Shaji n karun पिछले कुछ समय से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे। इलाज के बावजूद उनकी तबीयत में कोई खास सुधार नहीं हुआ, जिसके बाद उन्हें घर लाया गया। यहीं, अपने निवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली।

Shaji n karun को उनके बेहतरीन सिनेमा के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया था। ‘पिरवी’, ‘वानप्रस्थम’ और ‘कुट्टी स्रन्क’ जैसी फिल्मों के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। हाल ही में उन्हें वर्ष 2023 का J. C. Daniel पुरस्कार भी प्रदान किया गया था, जो केरल सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च फिल्म सम्मान है।
Shaji n karun की पहली फिल्म ‘Pirvi’
अगर उनके करियर पर नजर डालें तो शाजी की पहली फिल्म ‘Pirvi’ रही, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। इस फिल्म को 1989 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में कैमरा डी’ओर का विशेष उल्लेख भी प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने ‘स्वाहम’ और ‘वानप्रस्थम’ जैसी फिल्मों के ज़रिए वैश्विक सिनेमा में अपनी एक खास जगह बनाई।
Read Latest News Neerexpress: Shaji n karun केवल एक निर्देशक भर नहीं थे, बल्कि उन्होंने भारतीय सिनेमा की सांस्कृतिक विरासत को दिशा देने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अलावा, वे लंबे समय तक केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव IFFK के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी अपनी भूमिका निभाते रहे।
Shaji n karun की पहली फिल्म पिरवी 1988 ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जबरदस्त पहचान बनाई — इसे लगभग 70 अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया। इसके बाद आई उनकी दूसरी फिल्म स्वाहम 1994 जिसे प्रतिष्ठित कान फिल्म समारोह में पाल्मे डी’ओर के लिए नामांकन मिला।

तीसरी चर्चित फिल्म वानप्रस्थम
उनकी तीसरी चर्चित फिल्म वानप्रस्थम (1999) भी कान में प्रदर्शित की गई, जिससे उनका सिनेमा वैश्विक स्तर पर और मजबूत हुआ। शाजी एन. करुण को अपने करियर की शुरुआती अवधि में ही महान फिल्म निर्माता जी. अरविंदन के साथ काम करने का दुर्लभ अवसर मिला। उन्होंने अरविंदन की दूसरी फिल्म कंचना सीता (1977) में भाग लेकर इस यात्रा की शुरुआत की।
अरविंदन की रचनात्मक दुनिया का हिस्सा बनकर शाजी ने तेजी से पहचान हासिल की और फिल्मी जगत में अपनी जगह बनाई। Thampu (1978), Kummetti (1979), Esthappan (1980), Pokkuveyil (1982), Chidambaram (1986), Oidathu (1987 और Unnasy (1988) जैसी फिल्मों में उन्होंने कैमरे के पीछे अपनी सूक्ष्म दृष्टि और संवेदनशीलता से अरविंदन की फिल्मों को जीवंत किया।
Shaji n karun की फिल्मों को आलोचकों की सराहना के साथ-साथ अनेक पुरस्कार भी मिले हैं। अब तक उनकी कृतियों को सात राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सात केरल राज्य पुरस्कार मिल चुके हैं। कुट्टी स्रांक (2010) को सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
Order of Arts and Letters
पद्मश्री और फ्रांस के प्रतिष्ठित “Order of Arts and Letters” जैसे सम्मानों से नवाज़े गए Shaji n karun न केवल एक सृजनशील फिल्मकार हैं, बल्कि फिल्म संस्थानों के नेतृत्व में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। वे केरल राज्य चलचित्र अकादमी के प्रमुख अध्यक्ष रह चुके हैं और साथ ही उन्होंने केरल राज्य फिल्म विकास निगम (KSFDC) के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी निभाई है।
Read Latest News Neerexpress: Shaji n karun एक प्रतिष्ठित फिल्मकार और सिनेमाई कलाकार थे, जिनका योगदान मलयालम सिनेमा की समृद्धि में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उन्होंने लगभग 40 फिल्मों में Cinematographer के रूप में काम किया और अपनी गहन दृष्टि व कलात्मकता से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पहचान बनाई। Pirvi, Swahm, Vanaprastham, Nishad, Kutti Sankan और Dreamer जैसी फिल्मों में उनका सृजनात्मक स्पर्श स्पष्ट रूप से महसूस किया जा सकता है।
Shaji n karun का जन्म 1952 में Kerala के Kollam जिले में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद तिरुवनंतपुरम के University college से स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने फिल्म निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाते हुए पुणे स्थित प्रतिष्ठित फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से Cinematographer में डिप्लोमा प्राप्त किया।
Shaji n karun का निधन भारतीय सिनेमा के एक अभूतपूर्व युग का समापन है, लेकिन उनकी फिल्में – जो कालातीत, गहन और अत्यधिक मानवीय हैं – आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रेरित करती रहेंगी। उनके परिवार, अनुयायी और उनकी अमर कृतियाँ उनका जीवंत स्मरण बनाए रखेंगी।